आज पूरे विश्व में महिलाओं को सशक्त बनाने के बारे में बात की जा रही है, किंतु सत्य तो यह है कि जो कुछ किया जा रहा है उससे स्थिति और अधिक खराब हो रही है। एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं इस बात पर गौरवान्वित महसूस करता हूं कि हमने उनको न केवल सशक्त बनाया है, हमने महिलाओं को देवी लक्ष्मी के रूप में सम्पन्नता और खुशहाली,देवी सरस्वती के रूप में बुद्धि और ज्ञान और देवी दुर्गा के रूप में शक्ति के स्रोत के रूप में महिमामंडित भी किया है। हमारा देश ऐसा देश है जहां पर हम अपने देश को अपनी माता होने का गौरव प्रदान करते हैं और वंदे मातरम् के द्वारा उसकी पूजा प्रार्थना करते हैं। यह एक शर्मनाक बात है कि हमारी माता का दिल, देश की राजधानी, बलात्कार के केन्द्र के रूप में निर्दिष्ट हो गई है।
यह नोट करना अत्यंत प्रशंसनीय है कि हमारे प्रधानमंत्री ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए – बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ – का एक सशक्त नारा दिया है किंतु उन बेटियों की क्या नियति है जिनके सामने आई परिस्थितियों ने उन्हें चिरकाल से वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया है।
हमारे देश की राजधानी दिल्ली एक ऐसा शहर बन गया है जहां पर हमारी बेटियां अत्यंत असुरक्षित हो गई हैं। प्रत्येक सुबह हमें समाचार पत्रों में बेटियों के विरुद्ध सभी प्रकार के घृणित कृत्यों के समाचार देखने को मिलते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया के हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार ‘ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ’ स्कीम के अंतर्गत महिला और बाल विकास मंत्रालय को 30 लाख से ज्यादा आवेदन मिले हैं। क्या सभी आवेदक ईमानदारीपूर्वक इस नारे पर विश्वास करते हैं अथवा यह दो लाख रुपए का नकद प्रोत्साहन है जिसके कारण वे ऐसा कर रहे हैं।
बेटियों को बचाने के लिए सिर्फ नारा नहीं बल्कि प्रभावी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। हमने उन्हें बचाने के लिए क्या कदम उठाए हैं? हम उन बेटियों के लिए क्या कर रहे हैं जो रेड लाइट एरिया क्षेत्रों में सार्वजनिक सम्पत्ति के रूप में इस्तेमाल की जा रही हैं। वेश्यावृत्ति तकनीकी रूप से अवैध है किंतु जहां पर कोई बिचौलिया या वेश्यालय सम्मिलित हो तो आप वहां पर जा सकते हैं ; आप इस काम के लिए सार्वजनिक स्थानों पर नहीं जा सकते हैं किंतु दरवाजे के पीछे ऐसा कर सकते हैं; और ऐसा करना संवैधानिक है। भारत में वेश्यावृत्ति प्रतिवर्ष औसतन 8.4 बिलियन रुपए का उद्योग है ( गूगल के अनुसार) इस उद्योग में 0.3 मिलियन वेश्यालय और 2 मिलियन वेश्याएं हैं जिनमें 10 मिलियन वाणिज्यिक सेक्स वर्कर हैं। उनके मूल ग्राहक ट्रक ड्राइवर, प्रवासी कर्मकार और लंबे समय से अपने परिवारों से दूर रह रहे पुरुष होते हैं। एक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि एक-तिहाई वेश्याएं गरीबी के कारण और एक चौथाई से अधिक वेश्याएं अपनी वैवाहिक समस्याओं के कारण इस पेशे को अपनाती हैं।
भारत में फेयर सेक्स इतना व्यथितकारी नहीं है जितना कि विश्व के अन्य भागों में। विश्व भर में इस देह व्यापार से प्रतिवर्ष करीब 196 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है जिसमें 73 बिलियन डॉलर के व्यापार के साथ चीन सबसे ऊपर है। विश्व में हमारे देश का स्थान सातवां है जहां पर औसतन 8.40 बिलियन डालर का कारोबार होता है। क्या यह आशा करना एक कल्पना लोक में जीने के समान नहीं है कि देह व्यापार का अंतर्राष्ट्रीय माफिया इस उद्योग को कमतर होने दे रहा है। तथ्य यह है कि बेटी बचाओ आंदोलन के मार्ग में यह बाधा इसे निष्प्रभावी बनाने का कार्य सिद्ध होगी।
यह गौर करना अत्यंत व्यथितकारी है कि एक बड़ी राशि खर्च करने के बावजूद हमें अपनी पवित्र नदियों, गंगा और जमुना से जुड़ी परियोजनाओं में सफलता नहीं मिली है। ऐसा ही भारत को नशामुक्त कराने के लिए चलाए गए आंदोलन में हुआ है। नशा (अल्कोहल) उद्योग भी एक बड़ा राजस्व उगाही वाला अंतर्राष्ट्रीय उद्योग बन गया है। और गो-मांस उद्योग पर प्रतिबंध लगाने के बारे में क्या हुआ ; गोवंश के साथ हमारे धार्मिक जुड़ाव के बावजूद हम गो मांस उद्योग पर प्रतिबंध लगाने में विफल रहे हैं।
सच तो यह है कि शायद ही कोई एक सप्ताह से अधिक समय तक सेक्स रैकेट और उससे जुड़े अपराधों की परवाह करता है। रेशमपुरा (ग्वालियर) में क्या हो रहा है जहां पर प्रत्येक दिन परिष्कृत सेक्स शाप प्रकट हो रही है। यहां पर कालेज में जाने वाली लड़कयों, प्रत्येक वर्ग की विदेशी और स्थानीय लड़कियों को वेतन या दैनिक मजदूरी पर देह व्यापार में धकेला जा रहा है।
हम अपने देश में प्रत्येक गलत काम को विदेशी आक्रांताओं-मुगलों और ब्रिटिश युग से जोड़ देते हैं। किंतु अब क्या हो रहा है? क्या हमने इसी प्रकार के स्वतंत्र भारत का सपना देखा था जिसने यह गंदा रूप ले लिया है और हमें यह बुराई मिटाने के लिए भरसक प्रयास करने होंगे।
भारत में एक ऐसा स्थान है वहां पर वेश्यावृत्ति को बड़े पैमाने पर स्वीकार किया जाता है। वह है सोनागाची, कोलकाता। खेद है कि इस स्थान को ‘एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया’ कहा जाता है। इस स्थान पर 20,000 से ज्यादा सेक्स वर्कर रहती हैं यहां पर 11 रेड लाइट जिले हैं, जिनमें सबसे बड़ा सोनागाची है जहां 8000 वेश्याएं काम करती हैं, यह शक्तिशाली चकलाघर स्वामियों द्वारा संचालित है। प्रत्येक दिन यहाँ पर औसतन 40,000 ग्राहक आते हैं, इसका अर्थ है कि यहां पर प्रत्येक वेश्या एक दिन में पांच से छह ग्राहकों को संतुष्ट करती है। हमें वेश्याओं से उत्पन्न बच्चों के जीवन के बारे में जानने के लिए ऑस्कर पुरस्कार से नवाजी गई डाक्यूमेंटरी फिल्म ‘बार्न इन टू ब्रूथन‘ देखनी चाहिए।
मुम्बई में कमाथीपुरा नाम से विख्यात ग्रेंड रोड रेड लाइट एरिया भारत का दूसरा सबसे बड़ा रेड लाइन एरिया है। 1992 में बम्बई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन ने रिकार्ड किया था कि यहां पर 5000 सेक्स वर्कर थीं जो 2009 में घटकर 1600 रह गईं, ऐसा पुलिस की कड़ी कार्रवाई से संभव हो पाया। 1990 के दशक के अंत में एड्स की घटनाओं में वृद्धि होने और सरकार की पुनर्विकास स्कीम से सेक्स वर्करों को इस वेश्यावृत्ति के धंधे से निकालने में, गंदगी से बाहर निकालने में मदद मिली।
पुणे में बुधवारपेट भारत का तीसरा सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है जहां पर करीब 5000 कमर्शियल सेक्स वर्क हैं। यह आश्चर्य की बात है कि यदि आप पुणे में प्रसिद्ध और सबसे धनी गणेश मंदिर में जाना चाहते हैं या प्राय: सस्ते या मंहगे सेक्स को खरीदना चाहते हैं तो आपको बुधवारपेट सेक्स कालोनी से होकर गुजरना होगा।
उस देश में, जहां पर बेटी को एक देवी माना जाता है, वहां सेक्स बाजारों की कोई कमी नहीं है, दिल्ली में जी.बी. रोड (गार्स्टिन बेशन रोड), नागपुर में गंगा जमुना, इलाहाबद में मीरगंज, वाराणसी में शिवदासपुर, मुजफ्फरपुर (बिहार) में चतुर्भुज स्थान, कर्नाटक के बेलारी और कोप्पाल जिलों में देवदासियां, जयपुर में तिलवाड़ा, हैदराबाद में महबूब की मेंहदी मशहूर हैं।
यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि राजस्थान में एक गांव है जहां पर बेटी के जन्म पर उत्सव मनाया जाता है, क्या हम जानते हैं वहां पर ऐसा क्यों होता है, जी हां, ऐसा इसलिए, क्योंकि जब वे बड़ी होंगी तो वे वेश्यावृत्ति के काम द्वारा आय का स्रोत बनेंगी।
राजस्थान की सीमा के निकट उत्तरी गुजरात वाडिया में एक प्रसिद्ध गांव वेश्यावृत्ति के लिए जाना जाता है। यहां पर लड़के वेश्याओं के दलाल के रूप में काम करते हैं और लड़कियां, इसमें से कुछ 10 से 12 वर्ष की हैं, सेक्स बेचकर आजीविका का स्रोत बनती हैं। हृदय को अत्यंत पिघला देने वाली और मन को झकझोर कर रख देने वाली बात यह है कि उनके परिवार के सदस्य ही उनको ऐसा करने के लिए मजबूर करते हैं। अहमदाबाद, राजस्थान, मुम्बई के दूरवर्ती स्थानों और यहां तक कि पाकिस्तान से पुरुष सेक्स का आनन्द लेने के लिए इस गांव में आते हैं। इनका रेट 500 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक होता है। ऐसा अनुमान है कि वाडिया के 6000 निवासी सरानिया समुदाय के लोग हैं। सरानिया समुदाय वह है जिनके पुरुष आज़ादी से पहले कभी वहां के शासको की सेना में भर्ती होते थे।
मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में बचारिया एक मातृ सत्तात्मक समुदाय है जहां पर कहा जाता है कि लड़कियां शाही वेश्यावंश की होती हैं। यहां पर परिवार की वित्तीय स्थिति में सहायता देने के लिए लड़कियों को व्यवसाय के तौर पर वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे अधिकांश परिवारों के घरों में एक कमरा ऐसे घृणित कार्य के लिए समर्पित होता है। यह समुदाय राजघराने की गणिका होने का दावा करता है। इस समुदाय में परिवार बड़ी बेटी की दलाली का काम करता है और उसे इस घृणित व्यवसाय में धकेल देता है। सबसे खराब बात तो यह है कि पिता या भाई उनके लिए ग्राहक ढूंढते हैं और शर्तें तय करते हैं।
यह कोई नहीं जानता कि विभिन्न मतावलंबी इस रोम दंतकथा पर क्या प्रतिक्रिया देंगे जहां पर बेटी (पेरू) ने जेल में अपने पिता (सिमोन) की जिंदगी बचाने के लिए पिता को अपना स्तनपान कराया जहां पर उसे मौत की सजा का दोषी मानकर भूख और प्यास से मरने के लिए छोड़ दिया गया था।
किंतु इतना तो निश्चित है कि बेटी (पेरू) के इस अनैतिक कृत्य के पीछे उसकी मंशा और भावना पवित्र और देवदूत संदृश्य थी। निश्चित तौर पर यह पाप कृत्य नहीं था। यहां पर इस आख्यान का उल्लेख इस बात पर तर्क करने के लिए नहीं किया गया कि क्या यह नीतिपरक था या नहीं। यहां पर इसे सिर्फ इस लिए उद्धृत किया गया कि एक बेटी इतना भी त्याग कर सकती है और समाज ने उसके साथ क्या किया या क्या कर रहा है।
हम इस दिशा में अपने लक्ष्य को तब ही हासिल कर पाएंगे जब हम ईमानदारी और दृढ़ निश्चय से प्रयास करें। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के लिए उसी प्रकार के ईमानदारीपूर्वक प्रयास करने की आवश्यकता है जैसा कि स्तनपान कराने वाली बेटी (पेरू) का।
इस संबंध में मेरा विनम्र सुझाव है कि हम उस महिला बेला और बेतुल के प्रस्ताव और अपील को स्वीकार करके इस अभियान को व्यावहारिक जामा पहनाएं जो परिस्थितिवश वेश्यावृत्ति के व्यवसाय के लिए विवश हुई जिसने उसका जीवन निराश्रित बना दिया; हम सभी जानते हैं कि निराश्रित महिला के लिए वेश्यालय गमन करना आसान होता है।
जिसने नेहरू और जिन्ना से अपने को अपनाने का अनुरोध किया था जिन्हें उसने दो दलालों से 500/- रुपए में खरीदा था। इन लड़कियों ने भारत की स्वतंत्रा के बंटवारे के लिए अपने सतीत्व का सौदा किया। वह गणिका इन लड़कियों को उन मानव दुर्व्यापार करने वालों से बचाना चाहती थी, जो उन्हें समाज कूड़ेदान रेड लाइट एरिया में धकेलना चाहते थे।
यदि माननीय प्रधानमंत्री सहित हम सभी एक निर्धन बेटी को अपना लें तो कोई कारण नहीं कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारा साकार रूप न ले ले।
क्या ये बेटियां इसकी भी पात्र नहीं कि हम उनकी चिंता करें या उन पर ध्यान दें। हम उन्हें किस प्रकार सम्मान दिला पाएंगे? यह समय की मांग है कि उनकी अस्मिता को बचाया जाए और यदि हम ऐसा नहीं कर सकते तो हम उन्हें पैदा होने से पूर्व मार दें। हमें भगवान का शुक्रगुजार होना चाहिए कि हमारे देश में लड़कियां अपनी अस्मत उस तरह नहीं बेच रही हैं जिस प्रकार तथाकथित पश्चिमी देशों में आधुनिक लड़कियां। वे अपना नाम कमाने और पैसे के लिए विश्व भर में धनाड्य व्यक्तियों को अपनी अस्मत बेच रही हैं। हमें ऐसी बेटियों का पुनर्वास करना है क्योंकि वे हमारे बीच रह रहे दरिंदों के कारण अपनी अस्मत खो चुकी हैं और हमें इन दरिंदों को सार्वजनिक तौर पर ऐसा दंड देना चाहिए जो उदाहरण बन सके। और यदि हममें इतना दम नहीं कि हम इस आंदोलन को शक्ति प्रदान कर सकें तो यह बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ क्यों कर रहे हैं और किसके लिए कर रहे हैं? क्या उन्हें स्कूल या कार्य स्थल पर जाते समय या स्कूल से आते समय अपहरण का अगवा करने के लिए और गैंग रेप करने और हत्या करने या मानव दुर्व्यापार करने हेतु छोड़ दिया जाए। इसकी समीक्षा बेहद कटु है किंतु इसकी वास्तविकता से इंकार नहीं किया जा सकता है।
इस आंदोलनों को देखते हुए कोई भी आसानी से ‘ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ’ आंदोलन की नियति का निष्कर्ष निकाल सकता है। 2017-2018 में इस आंदोलन के लिए 200 करोड़ रुपए की निधि आवंटित की गई। विकीपीडिया के अनुसार इस राशि के लिए पात्र समझी जाने वाली ऐसी बेटियों (0-14 वर्ष) की संख्या करीब 17,27,99,553 है। इसका मतलब प्रत्येक बेटी के लिए 11 रुपए 50 पैसे की राशि रखी गई। ऐसा है कि नहीं। इस तथ्य के मद्देनजर, यह आंदोलन बेटियों के साथ एक भद्दा मजाक लगता है। अत: आइए हम सर्वप्रथम उनकी अस्मिता की रक्षा करें और उसे बाद उसे शिक्षा दें और उसे समाज में बिना भय के सम्मानपूर्वक रहने दें।
मुहम्मद टी कैफी
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